कोच्चि: एक पिंक पुलिस अधिकारी द्वारा चोरी का आरोप लगाये जाने के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने एक बच्ची को पहुंचे आघात पर विचार करते हुए वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार को उसके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजे के रूप में 1.5 लाख रुपये का भुगतान करने का बुधवार को निर्देश दिया. उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को मुकदमे की लागत के रूप में बच्ची को 25,000 रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया. न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने दोषी अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी निर्देश दिया.
अदालत ने कहा कि जब तक अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू और समाप्त नहीं हो जाती, तब तक अधिकारी को उन कार्यों से दूर रखा जाएगा, जिसके लिए उसे आम जनता के साथ बातचीत करने की आवश्यकता होगी. अदालत ने निर्देश दिया कि अधिकारी को पारस्परिक व्यवहार पर आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इन निर्देशों के साथ अदालत ने आठ वर्षीय लड़की की याचिका का निपटारा कर दिया. इस याचिका में सरकार को उसके मौलिक अधिकार के उल्लंघन के लिए अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.
इस बच्ची ने मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये भी मांगे थे, लेकिन अदालत ने कहा कि उसके द्वारा निर्धारित राशि पर्याप्त है. अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता और उसके पिता संबंधित अधिकारी के खिलाफ किसी भी अन्य मुकदमे को आगे बढ़ा सकते हैं जो वे चलाना चाहते हैं.
यह घटना 27 अगस्त को अत्तिंगल निवासी जयचंद्रन और आठ साल की उनकी बेटी के साथ मूनुमुक्कू में हुई थी. यातायात नियमन में सहायता के लिए तैनात महिला पिंक पुलिस अधिकारी रजिता ने दोनों पर पुलिस वाहन में रखे मोबाइल फोन को चोरी करने का आरोप लगाया था. वायरल हुए एक वीडियो में अधिकारी और उनके सहयोगी पिता-पुत्री को परेशान करते और यहां तक कि उनकी तलाशी लेते हुए दिखाई देते हैं. इस दौरान बच्ची रोने लगती है.
हालांकि, जब वहां मौजूद एक व्यक्ति ने अधिकारी का नंबर डायल किया तो मोबाइल फोन पुलिस वाहन में ही मिला, जिसके बाद पुलिस टीम पिता और बेटी से माफी मांगे बिना ही वहां से चली गई. अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत महिला अधिकारी का तबादला कर दिया गया और राज्य के पुलिस प्रमुख ने उसे व्यवहार प्रशिक्षण से गुजरने का निर्देश दिया. अदालत ने पहले कहा था कि पिंक पुलिस अधिकारी के आचरण से ‘खाकी के अहंकार’ का संकेत मिलता है.